Yug Purush

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8TH SEMESTER ! भाग-11 ( Worst Days of My Life)

Chapter-5: Worst days of my life

इसके बाद...उसके अगले पल ही दीपिका मैम  ने वो हरकत की जिसके कारण मेरा दिल लेफ्ट साइड से राइट साइड मे शिफ्ट होने वाला था, 1000 वोल्ट्स का झटका दिया दीपिका मैम  ने मुझे....उन्होंने  मेरा हाथ पकड़ा और सीधे अपने कमर के नीचे  टच करा दिया और बोली

"पसंद आया हो तो दोबारा बताना....."

मैं, उस रूम से बाहर निकला,वहाँ से आने के बाद मेरी सिट्टी पिटी गुम हो गयी थी, ऐसा लगने लगा था जैसे की किसी ने मेरे हाथ मे कुछ देर पहले करेंट का तार पकड़ा दिया हो....... जिसके झटके अब भी मुझे लग रहे थे.. कुछ समझ नही आ रहा था की अभी कुछ देर पहले क्या हुआ, अभी क्या हो रहा है.. इसके आगे क्या होगा. मुझे खुश होना चाहिए या फिर दुखी...??? कुछ भी समझ मे समझ नही आ रहा था...

"क्या हुआ ? लाया प्रैक्टिकल  कॉपी ?"मुझे अपने बगल मे चुपचाप बैठा देख अरुण ने पुछा....

"अभी कुछ देर बात मत कर ,सदमे मे हूँ...."

"क्या हुआ....किसी ने चोरी करते हुए देख लिया क्या ? "

"मेरी चोरी पकड़ी भी गयी और उसकी सज़ा भी दे दी गयी..."मैं अब भी सदमे मे था....

"आख़िर हुआ क्या...

"कुछ नही, अब मैं ठीक हूँ..."मेरे दिल-ओ-दिमाग़ मे , मेरे पूरे जेहन  मे सिर्फ़ वही नज़ारा घूम रहा था, जब दीपिका मैम  ने मेरा हाथ पकड़ा और मेरे हाथ को  टच करा दिया था ....

"बहुत बड़ा झटका झेला हूँ मै अभी ..."मैं बड़बड़ाया...

"ऐसा क्या देख लिया तूने..."

"देखा नही, बल्कि महसूस किया....."


दीपिका मैम  ने जो किया उसपर मुझे यकीन नही हो रहा था, कोई भी लड़की बिना जान पहचान के ऐसे कैसे कर सकती है, ये जानते हुए भी कि मैं उसकी शिकायत भी  कर सकता हूँ, शायद मैने ही दीपिका मैम  को बढ़ावा दिया था ऐसा करने के लिए...ना मैं डबल मीनिंग मे उससे बात करता और ना ही वो मेरा हाथ पकड़ती और ना ही........... खैर,  अभी तक जो कुछ भी मेरे साथ हुआ था वो सब अविश्वसनीय  था, मैने कभी नही सोचा था की मैं एक लड़की के पीछे पागल हो जाउन्गा और ना ही मैने ये सोचा था कि शुरुआत के कुछ दिनो मे ही मुझे वो छुने को मिल जाएगा......उस दिन के बाद दीपिका मैम  से जैसे मैं नज़र ही नही मिला पा रहा था, वो जब तक क्लास मे रहती मैं अपना सर झुकाए रहता और चुपके से उनकी तरफ देखता तो वो मंद-मंद मुस्कुराती नज़र आती....

"साला,  मैं कितना शर्मिला हूँ..."

मुझे मेरी ज़िंदगी के 18 साल बीत जाने के बाद ये मालूम चला कि, मैं भी उन लड़को मे से हूँ ,जिनकी लड़कियो को देखकर कुछ बोलने की हिम्मत नही होती.....एश कुछ दिनो से कॉलेज नही आई थी, मैं जब भी उसके क्लास मे जाकर अरुण के दोस्त से पुछ्ता तो वो ना मे सर हिला देता,...दिल बेचैन रहता था उसके बगैर , हर दिन लंच  मे मैं अरुण को लेकर उसकी क्लास मे उसके दोस्त के पास जाता था और जहाँ वो बैठा करती थी, उस जगह को इस आस मे देखता था कि शायद वो लेट आई हो,लेकिन हर दिन उसकी जगह कोई और लड़की ही वहाँ बैठी हुई मिलती और हर दिन मैं उसके क्लास से उदास ही लौटता था....

अभी तक तो मैं बहुत सी अजीब, अविश्वसनीय और अनएक्सपेक्टेड   चीज़ो को झेल चुका था, लेकिन इन सबके आलवा भी कुछ और था जो कि मेरी ज़िंदगी मे पहली बार होने वाला था और सबसे बड़ी बात तो ये थी कि मुझे इस बात की भनक तक नही थी....


कुछ दिन बीतने के बाद मेरी कुछ और लड़को से दोस्ती हो गयी और हर दिन की तरह हम आज भी लंच  मे अपनी क्लास के बाहर खड़े आस-पास से गुजरने वाली लड़कियो को देख देख कर  मज़ा ले रहे थे.....एश के लिए मेरा इंटेरेस्ट कम होता जा रहा था, मैं अब हर खूबसूरत लड़की को देखकर इसी ख़याल मे डूब जाता कि मैं उसे अपने हॉस्टल  के रूम मे ले जाकर उसके साथ बिस्तर गरम कर  रहा हूँ, एक अजीब सा बदलाव आ रहा था मुझमे.... दीपिका मैम  की उस हरकत से....

"सब लाइन मे खड़े हो..."किसी ने गला फाड़ कर अचानक कहा और जब मेरी नज़र उस तरफ पड़ी तो देखा कि दो सीनियर्स हमे लाइन मे खड़े रहने के लिए कह रहे थे.....उनका इतना कहना था कि हम सब तुरंत  लाइन मे खड़े हो गये....


"आँख नीचे कर बे...अपने बाप से आँख मिलाता है साले, हरामी की औलाद ..."किसी एक को उसने चमकाया....

"क्या है बेटा लोग... सीनियर्स को गुड मॉर्निंग, गुड आफ्टरनून... विश नही करते तुम लोग.... पिछवाड़े  मे डंडा डाल के याद दिलाना पड़ेगा क्या...."उन दो मे से एक ने बैग  टाँग रखा था यानी वो लंच  के बाद क्लास बंक मारने के प्लान मे था और दूसरा अपनी हथेलियो को रगड़ रहा था....


"चलो इधर आ जाओ और क्लास मे जितने लड़के है उन्हे भी बुलाओ..."जिसने बैग  टाँग रखा था वो बोला...

क्लास मे जितने लड़के थे उन सबको बुला लिया गया, मैं दिल ही दिल मे ये चाह रहा था कि कही से कोई टीचर आ जाए....लेकिन साला कोई नही आया, सब शायद इस वक़्त अपना पेट भरने मे लगे हुए थे और इधर ये दोनों हम सबको भरने मे लगे हुए थे.


"तेरा नाम क्या है...."मुझे उपर से नीचे देखते हुए वो बोला...
.
"ज..ज..जी..."मैं हकलाया...सच तो ये था कि वहाँ खड़े हर लड़के की बुरी तरह से फट चुकी थी...

"नाम क्या है इंजीनियर साहब  आपका..."

"अरमान..."मैने एक पल के लिए उसकी तरफ देखा और जवाब देकर वापस अपनी गर्दन नीचे कर ली....

"दिल के अरमान आँसुओ मे बह गये...."वो गाते हुए मेरे पास आया और बेल्ट के पास पैंट को पकड़ कर ज़ोर से हिलाता हुआ बोला "यहाँ क्या करने आता है..."

"पढ़ने..."

"तो फिर कल से फॉर्मल ड्रेस मे आया कर, वरना यही से नीचे फैंक दूँगा...समझा.. ये जीन्स वगैरह नही चलेगा... समझा "

"ज...ज...जी सर..."   (तेरा बाप देगा पैसा फॉर्मल ड्रेस खरीदने का , बे...साले चूतिए...)

"चल रिलैक्स  हो जा..."बेल्ट छोड़ कर मेरा कंधा सहलाते हुए वो बोला"मेरा नाम जानता है...."

"नही...."

"मैं हूँ बाजीराव सिंघम....समझा, कल से स्टूडेंट्स की तरह दिखना... समझा "

उन दो महान पुरषों  को मैं अकेला ही दिखा था क्या...  जो साले मेरी ले के चले गये? उनके जाने के बाद मालूम चला कि वो दोनो माइनिंग ब्रांच के थे.....

"ये तो माइनिंग के थे, इसका मतलब मैकेनिकल वाले भी कुछ दिनो मे अपने दर्शन देंगे..."मेरे मन मे ये प्रश्न आया



हर कॉलेज मे अलग-अलग फंडा चलता है, हमारे यहाँ रैगिंग  तब होती थी, जब कुछ हफ्ते निकल जाते थे...सिटी मे रहने वाले तो फिर भी बच जाते थे, लेकिन हॉस्टल  वालो की ऐसी तैसी हो जाती थी....

उस दिन लंच  के बाद हम सबके मन मे यही सवाल घूम रहा था कि इन सबसे कैसे बचा जाए, और उस दिन के बाकी के पीरियड्स इसी सोच और इसी ख़ौफ़ मे निकल गये,... इसके बाद जब मैं और अरुण कॉलेज की छुट्टी के बाद हॉस्टल  की तरफ  जा रहे थे कि हॉस्टल  से थोड़ी दूर पर भीड़ दिखाई दी.....

"ये साले, कमीने , यही चालू हो गये..."अरुण वही रुक गया और मुझसे बोला"इस रास्ते से मत जा, सामने सीनियर्स खड़े है...."

हम दोनो सामने भीड़ देख तुरंत पीछे मुद्दे पर हम दूसरे रास्ते से जाने के लिए पीछे मुड़े ही थे कि किसी सीनियर ने हमे देख लिया और उधर  अपने पास आने के लिए कहा, जहाँ भीड़ जमा थी....

"वापस कहाँ जा रहे थे.. सर..."मेरे कंधे पर हाथ रखकर एक बोला...

"वो मोबाइल छूट गया है, क्लास मे..."

"अच्छा..."उसने मेरा बैग  एक झटके से खींचा.. जिससे बैग फट कर सीधे उसके हाथ मे आ गया  और बैग  की चैन खोलकर पूरा सामान रास्ते मे ही बिखेरने के बाद बैग वापस  मेरे हाथ मे थमा दिया....

"अपना समान उठा और निकल यहाँ से..."


एक हाथ मे बैग  पकड़ कर अपनी बुक्स और कॉपी को उठाने के लिए मै  झुका ही था कि उस साले सीनियर ने मेरे पिछवाड़े पर कसकर एक लात मारी और मैं वही सडक पर ज़ोर से मुँह के बल गिरा....

"चूतिया  समझ के रखा है क्या.. हमें ."पीछे से उसकी आवाज़ आई, हाथो की मुट्ठीया बँध चुकी थी, और यदि उस वक़्त वो वहाँ अकेले रहता तो उस साले को इतना मारता कि रैगिंग  की स्पेलिंग तक भूल जाता वो, लेकिन मैं उठता उसके पहले ही उसके कुछ और दोस्त आ गये, और उसको पकड़ कर बोले कि...

"अभी नही, बाद मे देख लेंगे इन दोनो को..."जिसके जवाब मे वो मुझे  देख कर चिल्लाया कि "साले झूठ बोलता है, तू रुक आज रात तेरी धुलाई करता हूँ ,साले, हरामी ... मुझसे झूठ बोलता है, अपने बाप से झूठ "

उसके बाद सिर्फ़ ये हुआ कि गुस्से से बंद मेरी  मुट्ठीया ढीली पड़ गयी और वो सीनियर जिसने मेरे पिछवाड़े पर अपने जूते के निशान छोड़े थे वो मुझे गालियाँ देते हुए वहाँ से चला गया....

"मैने उसे मारा क्यूँ नही, क्या मैं डरपोक हूँ ?....."

आज ज़िंदगी के 18 साल गुज़ार लेने के बाद एक और सच से सामना करना पड़ रहा था....आज तक स्कूल मे सिर्फ़ छोटी-मोटी लड़ाई हुई थी, जिसमे मैं हर बार पूरे ज़ोर और शोर से भाग लेता था....और अपनी ए ग्रेड स्टडी के कारण  हर बार बच भी जाता था....स्कूल मे अक्सर सब यही बोलते कि मैं बहुत हिम्मतवाला हूँ, लेकिन आज कुँए का मेंढक समुंदर मे आया था, जिसका मुक़ाबला बड़े बड़े पगलाए हुए शार्क  और व्हेल   से था......

"चल अपने रूम चलते है...."अरुण ने मेरा बैग  उठाकर मुझे पकड़ते हुए बोला....मैं चुप रहा, चेहरा गुस्से से अब भी लाल था.....

"चल, भूल जा..."मुझे ज़बरदस्ती अरुण ने खींचा, जिसके चलते मैं उसपर झल्ला उठा....

"अबे छोड़"

"भाड़ मे जा..."गुस्से मे वो भी था, इसलिए वो भी मुझ पर चिल्लाया और मेरा बैग  मेरे हाथ मे पकड़ा कर वहाँ से हॉस्टल  की तरफ चला गया......

"उस साले ने लात मेरे पिछवाड़े पर मारी है और गुस्सा ये हो रहा है...."अरुण को हॉस्टल  की तरफ जाते हुए मैं देख रहा था....कुछ देर पहले जो हुआ, वो सब देखकर शायद अरुण को भी गुस्सा आया था...

"सॉरी...."हॉस्टल मे जब अरुण ने रूम का दरवाजा खोला तो मैने उससे कहा....जिसके जवाब मे वो हँसते हुए बोला

"सॉरी से काम नही चलेगा, मैं भी  मारूँगा.... पिछवाड़े पे एक लात "

"चल बे, दूर चल......"अरुण को धक्का देकर मै अंदर आया
अंदर आकर मैने अपना बैग  एक तरफ फैंका और बिस्तर पर लेट गया, अभी कुछ ही देर हुए थे कि एक छोटे कद का लड़का अरुण के पास आया, उसकी आँखो मे लगा चश्मा उसे एक सीरीयस स्टूडेंट की उपाधि दे रहा था....वो सीधे मेरे पास आया और मुझसे हाथ मिलाया वो भी बिना कुछ बोले.....और फिर सीधे जाकर अरुण के पास बैठ गया...

"साला पागल लगता है..."अभी अभी आए लड़के को  देखकर मैने मन  मे कहा....

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3 Comments

Kaushalya Rani

25-Nov-2021 09:08 PM

Well penned

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Barsha🖤👑

25-Nov-2021 05:09 PM

ओ गॉड ..ये तो एकदम रैगिंग वाला है..

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Sana khan

28-Aug-2021 04:31 PM

Wow

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